Monday, January 28, 2013

छुआ तूने तो जुम्बिश सी हुई है..


ऐश-औ-आराम का सामान कब थी,
जिंदगी इस कदर आसान कब थी।

छुआ तूने तो जुम्बिश सी हुई है,
वगरना तन-बदन में जान कब थी।

हबीबों ने ये इबारत सिखाई,
रकीबों की हमें पहचान कब थी।

ये तेरे हुस्न की जादूगरी है,
मेरी निगाह बेईमान कब थी।

तुम्हारे ही बदन की महक होगी,
घर में खुशबु-ए-लोबान कब थी।

Tuesday, January 22, 2013

एक मुक्तक


घटाओं के लबों पे फिर मुहब्बत की कहानी है,

हवाओं के परों पर एक खुशबू जाफरानी है।

मुहब्बत का सलीक़ा है कि तोड़ो सब उसूलों को,

उधर से है शरारत तो इधर से बईमानी है।