Wednesday, June 13, 2012

ग़ज़ल- एक लम्बे अंतराल के बाद...



सच तो ये है बड़ा बाशऊर रहता है,
जब वो रात को नशे में चूर रहता है.

मिरे महबूब कि अदा भी चाँद जैसी है,
हद-ऐ-निगाह में रह कर भी दूर रहता है.

छत के ऊपर से गुजरते हैं तो रो देते हैं,
बादलों पर भी ये कैसा फितूर रहता है.

अभी तलक भी मुहब्बत जवान है दिल में,
अभी भी इश्क का थोडा सुरूर रहता है.

कहाँ किताब मदरसों कि ज़रुरत है यहाँ,
जब हर गाँव में कबीर-सूर रहता है.