Wednesday, November 30, 2011

देखिये कौनसे धारे में सफीना होगा...


आखरी जाम समझ कर इसे पीना होगा,
कब ये सोचा था कि इस हाल में जीना होगा.

वो अभी तक भी है नाराज़ मेरी हरकत पे,
मैंने बचपन में खिलौना कभी छीना होगा.

तेज़ बहते हुए धारे हैं जिंदगी में कई,
देखिये कौनसे धारे में सफीना होगा.

अपनी नजदीकियां पहचान में आ जायेंगी,
तेरी खुशबु से महकता मेरा सीना होगा.

जिस तरह आफताब से उधार लेता है,
नूर तेरा भी इसी चाँद ने छीना होगा.

Tuesday, November 15, 2011

दरम्यान अपने हवा भी ना रहे...


आदतों में भी खराबी ना रहे,
औ' कोई शौक़ भी बाकी ना रहे.

यही अंदाज़-ए-ज़िन्दगी रखना,
मौत को शिकवा ज़रा भी ना रहे.

नाम मयखानों का मंदिर कर दो,
कोई साकी औ' शराबी ना रहे.

आज इतना करीब आ जाओ,
दरम्यान अपने हवा भी ना रहे.इसलिए बन के रहा जोकर भी,
उसके चेहरे पे उदासी ना रहे.

जो भी कहना है अभी कह डालूँ,
बाद में ऐसी खुमारी ना रहे.

तीर मुझपे चलाने वाले सुन,
देख...कोना कोई खाली ना रहे.