Tuesday, February 23, 2010

जाहिल नहीं मिला...


महफ़िल में कोई तेरे मुकाबिल नहीं मिला,
तुझ सा हसीन कोई भी कातिल नहीं मिला.

देखना, किसी किताब में पडा मिले,
जब से तुम को सौंप दिया दिल नहीं मिला.

पढ़ पढ़ के किताबों को इश्क सीखता रहा,
मुझ से ज़हीन कोई भी जाहिल नहीं मिला.

हम सारी रात पागलों से ढूँढते रहे,
गोरे बदन पे उसके कहीं तिल नहीं मिला.

इक मौज थी,आगोश में दरिया के बस गयी,
सब कुछ तो मिल गया उसे साहिल नहीं मिला.

काफिये इजाद करता हूँ..


बहुत शिद्दत से मैं जब भी तुम्हारी याद करता हूँ,
नयी ग़ज़ल के नए काफिये ईजाद करता हूँ.

कलम को दिल के छालों में डूबा कर गीत लिखता हूँ,
उन्हें लगता है वक़्त कीमती बर्बाद करता हूँ.

कहीं मैला ना हो जाये ये तेरा हुस्न नज़रों से,
तेरा दीदार हमेशा वजू के बाद करता हूँ.

ख़याल बन के मेरे ज़हन में जो बैठ गया है,
ग़ज़ल में ढाल कर चलो उसे आज़ाद करता हूँ.

मुझे रेशम बना दे गर खुदा, लिपटूं तेरे तन से,
उठा कर हाथ बार बार ये फ़रियाद करता हूँ.

आँखों की ज़बान बोलता रहा हूँ रात भर,
तुम भी तो कुछ कहो मैं इरशाद करता हूँ.

Saturday, February 6, 2010

दिल मवाली है..


दूज के चाँद पर भी लाली है,
है तेरा नूर या दिवाली है,

ज़ुल्फ़ अपनी ना खुली छोड़िये यूँ,
रात पहले ही बहुत काली है.

उसे जो दिल दिया गुमा देगी,
मेरी महबूब भोली भाली है,

हटो सीने में चुभ रहा है कुछ,
तुम्हारी कान वाली बाली है.

दिल से खेलोगे, चोट खाओगे,
फिर ना कहना कि दिल मवाली है.

अब तो महलों से तोड़ दो नाता,
घर हमारा भी खाली खाली है.