Sunday, December 27, 2009

दायरा इन दिनों दुनिया का कितना तंग लगता है,
ज़रा सी उंगलियाँ मोड़ो तो मुट्ठी में सिमटता है.

फ़क़त ये माँ का आँचल ही उसे महफूज़ रखता है,
बच्चा माँ से पिटता है तो माँ से ही लिपटता है.

बड़े मकान के छोटे से इक कमरे में बूढ़ा बाप,
किसी मुरझाये हुए फूल कि तरह बिखरता है.

गरीब बाप के जज़्बात समझता नहीं कोई,
बेटियाँ दान करता है और बरसों सिसकता है.

मेरे शाने(कंधे) से भी उंचा नज़र आने लगा बेटा,
आजकल बात छुपाता है कहने में हिचकता है.

न जाने कितनी लम्बी जंग है दोनों में अब देखो,
जब चाँद छुप जाता है तो सूरज निकलता है.

Wednesday, December 2, 2009

मौसम सुहाना हो गया..



उसको देखा तो दीवाना हो गया,
चाँद भी कुछ शायराना हो गया.

तुमने झटका ज़ुल्फ़ से पानी उधर,
और इधर मौसम सुहाना हो गया.

भूल बैठे थे जिन्हें मुद्दत से हम,
फिर उन्ही गलियों में जाना हो गया.

खून-ऐ-दिल का और वो करते भी क्या,
हाथ पर मेहँदी लगाना हो गया.

हम अभी तक भी नशे में चूर हैं,
मय पिए हम को ज़माना हो गया.

उसको सीने से मेरे लगना ही था,
बिजलियाँ चमकीं, बहाना हो गया.

घर बनाया तुमने अल्लाह के लिए,
पंछियों का आशियाना हो गया.