दायरा इन दिनों दुनिया का कितना तंग लगता है,
ज़रा सी उंगलियाँ मोड़ो तो मुट्ठी में सिमटता है.
फ़क़त ये माँ का आँचल ही उसे महफूज़ रखता है,
बच्चा माँ से पिटता है तो माँ से ही लिपटता है.
ज़रा सी उंगलियाँ मोड़ो तो मुट्ठी में सिमटता है.
फ़क़त ये माँ का आँचल ही उसे महफूज़ रखता है,
बच्चा माँ से पिटता है तो माँ से ही लिपटता है.
बड़े मकान के छोटे से इक कमरे में बूढ़ा बाप,
किसी मुरझाये हुए फूल कि तरह बिखरता है.
गरीब बाप के जज़्बात समझता नहीं कोई,
बेटियाँ दान करता है और बरसों सिसकता है.
मेरे शाने(कंधे) से भी उंचा नज़र आने लगा बेटा,
आजकल बात छुपाता है कहने में हिचकता है.
न जाने कितनी लम्बी जंग है दोनों में अब देखो,
जब चाँद छुप जाता है तो सूरज निकलता है.