Thursday, April 23, 2009

ग़ज़ल

मेरे बच्चों को सुकूं दे, मेरी भी रिहाई कर,
ऐ गरीबी अब तो मेरे साथ बेवफाई कर।
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ऐ खुदा इतना करम कर बेटियों के वास्ते,
बदन पे हल्दी लगा दे हाथ को हिनाई कर।
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घर सजाने में लगा है आजकल हर आदमी,
घर को पीछे देख लेना दिल की तो सफाई कर।
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वक़्त है अहसां चूका दुनिया में लाने वालों का,
बाप की बैसाखी बन जा, माँ की भी दवाई कर।
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सिर्फ शायरी से अपना पेट भर सकता नहीं,
बंद कर कागज कलम अब तू भी कुछ कमाई कर।
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इंसानियत के दुश्मनों से तंग है दुनिया "अखिल"
इन को आइना दिखा अब ऐ खुदा सुनवाई कर।